बाल उपन्यास

बुधवार, जून 01, 2005

सूरज जी

snake

छुट्टी नहीं मनाते
सूरज जी‚ तुम इतनी जल्दी
क्यों आ जाते हो
लगता तुमको नींद न आती
और न कोई काम तुम्हें
ज़रा नहीं भाता क्या मेरा
बिस्तर पर आराम तुम्हें
ख़ुद तो जल्दी उठते ही हो‚
मुझे उठाते हो
कब सोते हो‚ कब उठ जाते
कहाँ नहाते¹धोते हो
तुम तैयार बताओ हमको
कैसे झटपट होते हो
लाते नहीं टिफ़िन‚
क्या खाना खा कर आते हो
रविवार आफ़िस बन्द रहता
मंगल को बाज़ार भी
कभी¹कभी छुट्टी कर लेता
पापा का अख़बार भी
ये क्या बात‚
तुम्हीं बस छुट्टी नहीं मनाते हो
—कृष्ण शलभ